Photographs: Shutterstock
अगर आप किराए का घर तलाश रहे हैं, तो कुछ जरूरी बातों पर गौर करें, अपने बजट और अपनी पसंद के किराए के घर में रहना कहीं सिरदर्दी न बन जाए...
- मीटर को रीड कर लें - किराए के घर में शिफ्ट होने से पहले मीटर रीडिंग चैक कर लें। सप्लायर से सुनिश्चित कर लें कि मीटर अपडेट है कि नहीं। ऐसा न हो उस घर में मूव करते ही आपको बिजली का लंबा-चौड़ा बिल मिल जाए।
- एरिया की पहचान करें - जिस एरिया में आप घर ढूंढ रहे हों, वहां रहने वाले टेंनेंट से रेंट का अनुमान लगा लें। ऐसा न हो लैंडलॉर्ड आपसे मनमाना किराया वसूल रहा हो।
- गुड कंडीशन या बेड कंडीशन - घर में शिफ्ट होने से पहले जरूरी व्यवस्थाओं पर नजर डालें, जैसे घर में नलों की कंडीशन, बारिश में सीलिंग से आने वाले पानी का जायज़ा जैसी वॉटर लीकेज की कंडीशन, आदि। घर शिफ्ट करना आसान नहीं होता, इसलिए सेटिसफेक्शन के बाद ही शिफ्ट करें।
- लीज़ एग्रीमेंट पर ध्यान दें - लीज़ एग्रीमेंट पर साइन करने से पहले उसमें दी गई नियम व शर्तों को ध्यान से पढ़ें। कुछ भी समझ न आने पर क्लीयर अवश्य करें। आपके और लैंडलॉर्ड के बीच कोई भी कम्युनिकेशन गेप नहीं होना चाहिए। प्रॉपर्टी से जुड़ी जरूरी जानकारी जानने का आपको अधिकार है, मेंटेनेंस रिसिप्ट, इलेक्ट्रिसिटी बिल्स जैसे जरूरी डॉक्यूमेंट्स जांच लें। अगर घर मॉर्टगेज प्रॉपर्टी या लोन डिफॉल्ट जैसी बातों से घिरा हुआ है, तो भविष्य में परेशानी उस घर में रहने वाले लोगों को उठानी होती है।
- सिक्योरिटी डिपॉजिट रिटर्न क्या है- क्लीयर कर लें कि लैंडलॉर्ड जितना सिक्योरिटी डिपोजिट रखवा रहा है, उसमें से कितना अमाउंट एडजस्ट होगा, जिस महीने आप उस घर को छोड़ेंगे। आमतौर पर यह दो महीने के किराए में एडजस्ट होता है। कभी भी सिक्योरिटी डिपॉजिट कैश नहीं देना चाहिए।
- किराया बढ़ाने की फ्रिक्वेंसी - इस बात को भी डिसकस करना जरूरी है कि लैंडलॉर्ड ने रेंट बढ़ाने का रूल क्या तय किया है। एडवांस रेंट कितना होगा, सिक्योरिटी अमाउंट कितना होगा, इसके बाद यह रिफंड कितना हो पाएगा वगैरह। सालाना बढ़ने वाले रेंट का प्रतिशत कितना होगा, तब जब आप अगले साल भी उसी घर में रहते हैं। किसी तरह की कोई रोक-टोक तो नहीं होगी। टाइमिंग को लेकर, गेस्ट एंट्री, पेट्स को रखने की दिक्कत, वेज-नॉनवेज पॉलिसी वगैरह-वगैरह।
- किराए में क्या-क्या शामिल होगा - कुछ चीजें मंथली रेंट में शामिल होती हैं। यह बात लीज़ एग्रीमेंट साइन करने से पहले लैंडलॉर्ड से चैक कर लें। वैसे आजकल लैंडलॉर्ड इलेक्ट्रिसिटी मीटर अलग से लगाकर देते हैं। पानी का बिल और सीवर लाइन के चार्जेस रेंट में शामिल कर लेते हैं।
- घर को डेकोरेट करने पर आपत्ति तो नहीं - कुछ लैंडलॉर्ड घरों में एक कील भी ठोकने की इजाजत नहीं देते। वॉल पर किसी भी तरह की व्यवस्था करने के बारे में लैंडलॉर्ड की परमीशन पहले से ले लें। पूछ लें कि आपको वॉल पेंट या ऐसे जरूरी बदलावों को करने की परमीशन मिलेगी या नहीं।
- मेंटेनेंस पॉलिसी - ज्यादातर मामलों में किराएदार को ही मेंटेनेंस फेयर देना होता है, इसलिए इस बात को लैंडलॉर्ड से पहले ही क्लीयर कर लें कि मेंटेनेंस कॉस्ट रेंट में शामिल है या नहीं। मेजर रिपेयर्स के बारे में भी जांच लें, सीपेज या अन्य सिविल वर्क्स के लिए खर्च लैंडलॉर्ड ही उठाएं। बिजली, जनरेटर, लिफ्ट और एसी आदि की सुविधाएं हों, तो इसका भी जिक्र किया जाए। प्रॉपर्टी की रिपेयेरिंग आदि का क्या तरीका होगा। कौन सी मरम्मत किराएदार कराएगा और किस टूट-फूट के लिए मकान मालिक जिम्मेदार होगा, इस बारे में ठीक से उल्लेख किया जाना चाहिए।
- सोसायटी के कानून - कुछ लैंडलॉर्ड को केवल किराए से मतलब होता है, आपके यहां कौन आ रहा है, कौन नहीं, इससे उन्हें खास लेना-देना नहीं होता। इंडीपेंडेंट हाउस या फ्लैट में गेस्ट या विजिटर्स का आना बड़ा मुद्दा नहीं होता, मगर जहां लैंडलॉर्ड भी रह रहा होता है, वहां शायद कुछ रिस्ट्रिक्शंस हो सकती हैं। ये भी ध्यान दें कि सोसायटी या बिल्डिंग में रहते वक्त लैंडलॉर्ड आपको भले ही घर में गेस्ट के आने-जाने के समय और पेट्स रखने जैसी परमीशन दे दे, मगर सोसायटी के नियम अगर इसका विरोध करते हों, तो ये मत भूलिए कि वहां सोसायटी के बनाए नियमों का पालन होगा, लैंडलॉर्ड की बात का नहीं। इस बात को नजरअंदाज न करें।
- सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर - आपको छोटे-मोटे कामों के लिए कहीं गाड़ी का इस्तेमाल तो नहीं करना पड़ रहा, जैसे ग्रॉसरी, मोबाइल रिचार्जिंग, एटीएम के इस्तेमाल वगैरह के लिए लंबा पैदल चलना पड़ रहा हो। कई बार थोड़ा पैसा बचाने के चक्कर में लोग आउट एरिया में घर देखते हैं, जहां सुरक्षा भी एक बड़ी चुनौती हो जाती है और जरूरी कामों के लिए भी पैदल जाना मुश्किल पड़ जाता है।
- पार्किंग चार्जेस - आमतौर पर पार्किंग चार्जेंस रेंट में शामिल होता है। इंडीपेंडेंट हाउस में ऐसी कोई प्राॅब्लम नहीं आती, मगर सोसायटी, अपार्टमेंट या कैंपस एरिए में पार्किंग चार्जेस लगाए जाते हैं, इस बात की पूछताछ पहले ही कर लें।
- मकान मालिक का बैकग्राउंड - जिस तरह किराएदार के बारे में पूरी छानबीन करने के बाद ही उसे घर रेंट पर दिया जाता है, उसी तरह किराएदार को भी लैंडलॉर्ड का बैकग्राउंड पता होना चाहिए। लैंडलॉर्ड के बारे में आस-पास के लोगों, बिल्डंग के वॉचमैन आदि से उनका व्यवहार और हिसाब-किताब पता करें।
- सुरक्षा का ध्यान रखें - घर की लोकेशन के हिसाब से सुरक्षा के क्या-क्या इंतजाम हैं, लैंडलॉर्ड से पहले ही पूछ लें। गेट पर डबलडोर लॉक, वॉचमैन या बिल्डिंग में लगे सिक्योरिटी कैमराज़ वगैरह।
- रेंटर इंशुरेंस भी जरूरी है- होमऑनर्स इंशुरेंस की तरह रेंटर इंशुरेंस भी जरूरी है। आपके उस घर में रहते अगर प्रॉपटी को किसी भी तरह की कोई हानि होती है, तो आपको उसका खामियाजा न भुगतना पड़े, इसके लिए इंशुरेंस जरूरी है। आग, पानी, बिजली, आंधी-तूफान आदि कारणों से किराए के घर को नुकसान पहुंचने पर किराएदार को भी आर्थिक मदद के लिए रेंटर इंशुरेंस करवा लेना चाहिए। इसमें फ्लड डेमेज शामिल नहीं होता, यानी बाढ़ से प्रॉपर्टी को हुए नुकसान के लिए आपको फ्लड इंशुरेंस करवाना होगा।
- कानून की जानकारी भी रखें - जागरुकता हर जगह काम आती है। भारतीय कानून में मकान मालिक और किराएदार दोनों की मदद के लिए कुछ कानून बनाए गए हैं, कुछ अधिकार दिए गए हैं। असुविधा से बचने के लिए घर खरीदने से पहले, घर बेचने से पहले, किराए से घर लेने से पहले और किराए से अपना घर देने से पहले जरूरी कानूनी जानकारी अवश्य रखें।